रविवार, 11 जनवरी 2009

विद्यार्थी जीवन की एक सच्ची घटना

मैं अपने विद्यार्थी जीवन की एक सच्ची घटना अपने पाठको को बताना चाहता हूँ । यह बात १९८९ की है । क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में अधिकारी पद का वेतनमान राष्टीकृत बैंकों के अधिकारी के वेतनमान के बराबर हो गया था । इसलिए ग्रामीण बैंकों की और प्रतियोगियों का झुकाव बढ़ गया था । मैंने भी जमुना ग्रामीण बैंक आगरा में अधिकारी पद के लिए आवेदन किया और परीक्षा बैंकिंग सेवा भरती बोर्ड लखनऊ के द्वारा आयोजित की गई । उन दिनों बी एस आर बी द्वारा आयोजित परीक्षाओं में चारो प्रस्न्पत्रों को हल करने के लिए १०५ मिनट का समय मिलता था । मैंने इसी लापरवाही में देखा ही नही की ग्रामीण बैंक की परीक्षा के लिए तो केवल ९५ मिनट का समय था। मैं गणित अच्छी होने के कारण सबसे अंत में इसे करता था कि जो भी समय बचेगा उसी में हल हो जाएगा । मैंने तीन प्रश्न पत्रों को हल कर लिया मेरे हिसाब से २२ मिनट का समय बचा था और गणित का पूरा प्रश्न पत्र हल के लिए बाकी था । मैंने सोचा बहुत समय एक बार टॉयलेट हो आता हूँ (ऐसा भी मैंने पहली बार किया था )। मैं जब लौटकर आया तो प्रस्न्पत्र पर नजर पड़ी तो देखा अरे यह पेपर तो ९५ मिनट का ही है और नजर भी इसलिए पड़ गहि क्योंकि मैंने जाते समय प्रस्न्पत्र को बंद कर दिया था । अब मेरे पास १० मिनट से भी कम बचे थे ।
लेकिन गणित पर अच्छी पकड़ होने के कारण मैं तुंरत प्रश्न पत्र हल करने बैठ गया । इन १० मिनट में मैंने पूरे ५० प्रश्न हल कर दिए । मुझे साक्षात्कार के लिए भी बुलाया गया और मैं अन्तिम रूप से भी चयनित हुआ था । मेरा इंटरव्यू आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका "प्रतियोगिता विकास " में भी छापा था ।

यह केवल इसी लिए हुआ कि मैंने गणित के किसी वतुनिष्ठ प्रस्न्पत्र को हल करते समय कभी भी पेन का प्रयोग नही किया था और यही आदत मेरे उस दिन काम आई थी । मैं अपने द्वारा अपने गई उन्ही विधिओं को इस ब्लॉग में समझा रहा हूँ ।

सुशील दीक्षित

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