ज़रा इस फोटो को देखिये । यह मैंने अपने मोबाइल से अपने ऑफिस के पीछे वी आई पी रोड पर खीची है । अभिवावक अपने बच्चों के लिए बस रिक्शा करके बस अपने जिम्मेदारी की इतिश्री समझ लेते हैं । फ़िर वह यह नही देखते की क्या रिक्शावाला बच्चे को ठीक से ले जा रहा है या नहीं । इस रिक्शा को वास्तव में यह ५ बच्चे धक्का दे रहे थे और पीछे पीछे दौड़ रहे थे । उन्हें वी आई पी रोड पर फर्राटे से फागती गाड़ियों का कोई भय नही था और न ही रिक्शा वाला ही उनको रोक रहा था । एक बात और जिस जगह यह रिक्शा चल रहा था उसके ठीक सामने महिला थाना था . वही पर पुलिस लाइन भी है . इससे अच्छा है की आप अपने बच्चे को पैदल स्कूल भेजा करे ।
इसी तरह से हम बच्चों को उतना समय नही देते हैं जितने के वह हकदार है । अब आप ही बताईये क्या यह उचित है ?
यह ब्लॉग चूंकि शिक्षा से सम्बंधित है इसलिए मैंने इस ज्वलंत समस्या को उठाया है ।
ज़रा सोचे और बताएं ------------------
सुशील दीक्षित
4 टिप्पणियाँ:
शानदार पोस्ट.
आपने ठीक कहा. इससे अच्छा है कि बच्चे पैदल स्कूल जायें.
बधाई सुशील भैया, आज से आप हिन्दी ब्लागर बन गये
जब किसी को हर जगह ब्लागिंग का मसाला दिखने लगे,
कोई शादी में जाये और उस पर पांच पांच पोस्ट ठेल दे और उसमें बताने के नाम पर कुछ भी नहीं हो तो समझा जाता है कि वह हिन्दी ब्लागर बन गया
अब सीरियसली; जो अंकगणित सिखा बता रहे हो वो बहुत बड़ा काम है, इतना बड़ा कि इसका मूल्यांकन आने वाले साल करेंगे, यानी....
" विचारणीय तथ्य "
Regards
साहब बिल्कुल सही फ़रमा रहे हैं पर इसमें भी बच्चों का मज़ा आता है इसलिए वह घर आकर कुछ नहीं बताते लेकिन मुझे बचपन से जुड़ी एक जानलेवा घटना भी याद आती है, सो यह बिल्कुल ग़लत है
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
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